देवीदास की कथा सारांश

पचौता वाले बाबा देवीदास और लाला जय सिंह के सिद्ध धाम की चमत्कारिक कथा हम यहाँ बता रहे हैं | पचौता धाम पर प्रति वर्ष होली के दिन विशाल मेले का आयोजन होता है ! लोग दूर-दूर से इनके सिद्ध धाम में दर्शन करने आते हैं। यहाँ लाला जय सिंह और बाबा देवीदास की कथा सारांश पढ़ सकते है |

देवीदास की कथा सारांश

बाबा लाला जय सिंह का मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बुलंदशहर जिले के पचौता नामक ग्राम में स्थित है जहां पर लाला जय सिंह और बाबा देवी दास का मंदिर बना हुआ है पचौता धाम पर प्रति वर्ष होली के दिन विशाल मेले का आयोजन होता है !

ग्राम पाचैता में एक सामान्य परिवार निवास करता था और उस परिवार के मुखिया का नाम हेमराज था और उनकी पत्नी का नाम मथुरी था । इनके पुत्र का नाम देविया उर्फ देवीदास था । श्रीमति मथुरी प्रत्येक पूर्णिमा अनूपशहर में गंगा नहाकर बाबा मथुरामल के मन्दिर पर जल चढाती और पूजा अर्चना किया करती थी। काफी वर्षो व्यतीत होने के बाद एक दिन मथुरी ने बाबा मथुरामल के मन्दिर पर जल चढाया और पूजा अर्चना की और कहा बाबा अब हम वृद्ध हो चुके है। हर पूर्णिमा आना हमारी क्षमता से बाहर है। बाबा अब हमें क्षमा करना ।

 

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भक्त की करुणा भरी पुकार सुनकर भगवान ने देववाणी की कि भक्तिनी तुमने मेरी बहुत सेवा की है मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूॅ। अब मैं तुम्हारे यहाॅं स्वयं उपस्थित हूगाॅं। फिर क्या था एक दिन श्रीमति मथुरी अपने पति हेमराज और 12 वर्षीय देविया के साथ दौपहर में मक्का के खेत मे नराई कर रही थी | अचानक एक चक्रवात तूफान में सभी अस्त व्यस्त हो गए। कुछ समय बाद तूफान शांत हुआ तो श्रीमति मथुरी व हेमराज को देविया नजर नहीं आया और बहुत दुखी हुए। रोते – रोते दो दिन बीत गए। अचानक तीसरे दिन देविया दौपहर के समय उस स्थान पर प्रकट हुए | जिसे आज कोठरी के नाम से पुकारा जाता है। अलौकिक आकृति के रुप जन्म लेने के बाद इस प्रकार सभी देविया को देवीदास कहने लगे।

देवीदास की कथा का इतिहास

बाबा देवी दास और लाला जय सिंह का इतिहास बहुत पुराण है | उस समय भारत में मुगलो का शासन था/ बाबा देवी दास के पूर्वज राजस्थान के जैसलमेर में रामगढ़ के पश्चिम नरेला यादव परिवार में हुआ था | इनका गोत्र पश्चान था परिवार के दो भाई वीरसिंह और धीरसिंह दिल्ली होते हुए वरण रियासत की तहसील आढ़ा पहुंचे जो दिल्ली से पूर्व दिशा में लगभग ६५ km दूर बसा हुआ है | एक भाई वीरसिंह आढ़ा में ही ठहर गए और दूसरे भाई धीरसिंह आढ़ा से ३ km पूर्व दिशा में सिसिनीगढ़ ( जिसे वर्तमान में पचौता के नाम से जाना जाता है) आकर बसे |

कुछ समय बाद धीर सिंह को एक पुत्र प्राप्त हुआ | जिसका नाम हेमराज रखा गया हेमराज की शादी गाजियाबाद के केलाभट्टा से हुई उनकी पत्नी का नाम मुथरी था कुछ समय बाद हेमराज के घर एक पुत्र प्राप्त हुआ | जिसका नाम देवियाँ रखा गया जो आगे चालकर देवीदास के नाम से प्रसिद्ध हुआ | सिसिनीगढ़ को आज लोग पचौता ग्राम और बाबा देवीदास के धाम के नाम से जानते है | जो उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले जिसका नाम पहले वरण था में पड़ता है | मुथरी गंगा की बड़ी भक्त जो गंगा स्नान करने के लिए अनूपशहर जाती थी | और सेठ मथुरापाल की धर्मशाला में ठहरती थी | सेठ मथुरमल एक भले व्यक्ति थे जो लोगो का भला करते थे/

देवीदास की चमत्कारिक कथा

एक दिन जब मुथरी आपने पुत्र देवियाँ के साथ खेत पर काम करने के लिए गयी तो एक तूफान आता है | जिसमे देवियाँ गायब हो जाता है | पुत्र को खोकर मुथरी दुखी मन से घर वापस आती है और गाव वालो को देवियाँ के गायब होने के बारे में बताती है | तब गांव वाले बताते है कि गाव में तो कोई तूफान नहीं आया था | लेकिन कुछ समय बाद देवियाँ वापस आ जाता है | गांव वाले देवियाँ को देखकर आश्चर्यचकित रह जाते है | क्योकि देवियाँ स्वाभाविक रूप से पूरी तरह बदल चूका होता है | वह आपने सम्पूर्ण धन गरीबो में दान करके भगवन की भक्ति मई लीन हो जाता है | उसकी भक्ति से पूरा गाव और राजा भी प्रभावित होते है और राजा अपनी रियासत के ५ गाव बाबा देवीदास को दे देता है |

लोग दूर – दूर से बाबा देवीदास के दर्शन के लिए ग्राम पचौता आते है |

जय लाला जयसिंह जी की

पिता देवीदास की जय

बोल साचे दरबार की जय

Around Years Old

Happy Peoples

Parshad Types

Temples

 

बाबा लाला जय सिंह की संछिप्त कथा:-

कुछ समय बाद बाबा देवीदास के ६ पुत्र होते है। जिनमे सबसे छोटे पुत्र का नाम जय सिंह रखा जाता है। सभी उन्हें प्यार से लाला कहकर पुकारते थे। इसलिए इनका नाम लाला जय सिंह पड़ गया। इनका जन्म श्री कृष्णा जामाष्टमी के बाद नवमी को हुआ था। लेकिन, जय सिंह जल्द ही चलना आरम्भ कर देते है तथा अपनी बाल लीलाओ से सभी का मन मोह लेते है। इसलिए जय सिंह को श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है। जब जय सिंह 5 वर्ष के थे तो एक दिन जय सिंह बाबा देवीदास से प्रसाद मांगते है। जब बाबा देवीदास उन्हें प्रसाद नहीं देते है तो जय सिंह नाराज होकर ढाके की और चले जाते है तथा वही पर समाधि ले लेते है।

जो भी भक्त जात लगाने के लिए पचौता जाता है।वो ढाके में लाला जय सिंह के मंदिर के दर्शन करता है। लाला जय सिंह के ढाके में समाधि ले लेने के कुछ समय बाद बाबा देवीदास भी १२० वर्ष की आयु में आपने शरीर त्याग देते है।

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मुख्य सूचना

बाबा लाला जय सिंह का मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बुलंदशहर जिले के पचौता नामक ग्राम में स्थित है जहां पर लाला जय सिंह और बाबा देवी दास का मंदिर बना हुआ है पचौता धाम पर प्रति वर्ष होली के दिन विशाल मेले का आयोजन होता है !